औषधीय प्रसंस्करण के लिए खरीदी गई करोड़ों की मशीनें खा रहीं जंग


भोपाल। सतपुड़ा की वादियों के बीच बसे छिंदवाड़ा में वनोपज का बंपर उत्पादन होता है। इसको लेकर यहां पर वनोपज के जरिए बनने वाले उत्पादों के लिए प्लांट लगाए गए थे। भरतादेव के पास पातालकोट औषधीय प्रसंस्करण केन्द्र एवं हर्बल एक्सट्रेट प्लांट को बनाया गया है। इस प्लांट में औषधीय प्रसंस्करण के लिए लाखों रुपए की मशीन रखी हैं लेकिन इसका रख-रखाव और इसे नियमित शुरू नहीं करने के कारण अब मशीनें जंग खा रही हैं।पूर्व वनमंडल में आने वाले इस औषधीय प्रसंस्करण केन्द्र को बीच में शुरू जरूर किया गया लेकिन कुछ दिन बाद फिर इसमें ताला लग गया। वर्तमान में यह प्लांट पिछले 1 साल से बंद पड़ा है जिसे शुरू करने के लिए वन विभाग की टीम भी रूचि नहीं दिखा रही है। वैसे इसे शुरू कराने के लिए टेंडर प्रक्रिया जरूर हुई थी।

प्लांट शुरू करने के लिए हर बार मशक्कत
डीएफओ एलके वासनिक ने बताया कि 2011 से शुरू हुए इस प्लांट को बीच में कई बार बंद किया जा चुका है। वन मंडल के आंकड़ों की माने तो यहां पर इसे दोबारा शुरू करने के लिए निविदा आमंत्रित कर प्राइवेट फर्म को बुलाया गया था। इसके बाद जैसे-तैसे कुछ दिनों तक यह प्लांट शुरू हो पाया था। यहां वन विभाग के अधिकारियों ने निजी फर्मों को आमंत्रित करने के साथ इस प्लांट को संचालित करने के लिए रॉ मटेरियल के लिए बाजार से भी सहयोग किया था।

प्लांट को लेकर अब तक यह हुआ
पातालकोट औषधीय प्रसंस्करण केन्द्र का भूमिपूजन 2006 में हुआ था। केन्द्र का निर्माण वर्ष 2007 से शुरू किया गया जिसके बाद वर्ष 2008 में यह प्लांट बनकर तैयार हो पाया था। भूमिपूजन और निर्माण के बाद 2011 में सभी मशीनें लगकर तैयार हो गई थी। जिसमें 38 प्रकार की अत्याधुनिक मशीनें लगाई गई थी।

कुछ दिन चली मशीन अब हो रही बर्बाद
मशीनों के आने के बाद मार्च 2012 से 31 मार्च 2014 तक स्थानीय व्यापारी के द्वारा 1 लाख 31000 रुपए प्रतिमाह से आउट सोर्स पर लीज रेंट से इसका संचालन किया था। इसके बाद वन विभाग द्वारा 7 नवंबर 2014 से 31 अगस्त 2015 तक इसका संचालन किया गया। 1 सितंबर 2015 से 22 मार्च 2022 तफ इसका संचालन बंद रखा गया। 23 मार्च 2022 से 31 मार्च 2024 तक दूसरी बार आउटसोर्स पर लीज रेंट से इसका संचालन किया गया।

प्लांट में हैं अलग-अलग प्रकार की 38 मशीनें
प्लांट में कुल 38 मशीनों में से 29 प्रकार की मशीन सिर्फ एक्सट्रेट यानी वनोपज से निकलने वाला चूरा बनता है। इसी प्रकार 9 प्रकार की मशीन पावडर बनाने के काम आती है।

प्लांट शुरू होने से यह होगा फायदा
पातालकोट औषधीय प्रसंस्करण केन्द्र एवं हर्बल एक्सट्रेट प्लांट में आंवला, हर्रा, बहेड़ा सहित अन्य वनोपज के जरिए लिक्विड और पावडर का रॉ मटेरियल तैयार किया जाता है। इसके बाद इसकी सप्लाई की जाती है। यदि प्लांट शुरू होता है तो जिले में होने वाली इस वनोपज का सही दाम मिलने लगेगा।

जिले में वनोपज का इतना होता है उत्पादन
वन विभाग की जानकारी के अनुसार जिले में महुआ 1600 टन, गुल्ली 10 टन, चिरौंजी गुठली 65 टन, हर्रा 205 टन, कचरिया 120 टन, बाल हरी 12.5 टन, और बहेड़ा 60 टन उत्पादन होता है। सरकार ग्राम वन समिति और वन सुरक्षा समितियों के माध्यम से वनोपज की खरीदी करने एमएसपी तय करती है।