नई दिल्ली। पूर्व जहां पहले लिवर की बीमारियों को वयस्कों की समस्या माना जाता था, वहीं अब यह परेशानियां बच्चों में भी तेजी से बढ़ रही हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, बच्चों की बिगड़ती जीवनशैली, असंतुलित खानपान और शारीरिक गतिविधियों की कमी इसके मुख्य कारण बन रहे हैं।
 पहले जहां संक्रमण जैसे हेपेटाइटिस और लिवर सिरोसिस बच्चों में आम देखे जाते थे, अब उनके मामलों में गिरावट आई है। इसके विपरीत, अब बच्चों में क्रॉनिक लिवर डिज़ीज़, मेटाबोलिक डिसऑर्डर (जैसे विल्सन डिज़ीज़), बिलियरी अट्रेशिया और नॉन-अल्कोहोलिक फैटी लिवर जैसे रोग तेजी से बढ़ रहे हैं। खासकर गरीब तबके के बच्चों में हेपेटाइटिस ए अब भी लिवर फेलियर का प्रमुख कारण बना हुआ है, हालांकि समय पर टीकाकरण कर इस बीमारी से बचा जा सकता है। बच्चों में लिवर की समस्याओं के लक्षणों में त्वचा और आंखों का पीला पड़ना, पेट में सूजन या दर्द, अत्यधिक थकान, भूख में कमी, उल्टी, गाढ़े रंग का पेशाब या सफेद मल होना शामिल हैं। इन संकेतों को नज़रअंदाज़ न करें, क्योंकि समय रहते की गई जांच और इलाज से गंभीर बीमारियों को रोका जा सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि आजकल बच्चों में नॉन-अल्कोहोलिक फैटी लिवर डिज़ीज़ आम होती जा रही है। इसका प्रमुख कारण है बच्चों का घंटों बैठकर स्क्रीन देखना, बाहर खेलकूद में रुचि की कमी और जंक फूड का बढ़ता सेवन। इसके साथ ही कुछ मामलों में जेनेटिक कारणों से होने वाली विल्सन डिज़ीज़ भी सामने आ रही है, जो समय पर जांच के अभाव में जटिल बन सकती है।
 बचाव के तौर पर बच्चों को समय पर हेपेटाइटिस ए और बी के टीके दिलवाना बेहद जरूरी है। साथ ही नवजात शिशुओं में जन्म के तुरंत बाद मेटाबोलिक स्क्रीनिंग करवा लेना भविष्य में गंभीर लिवर बीमारियों से सुरक्षा का बेहतर उपाय हो सकता है। स्वस्थ जीवनशैली अपनाकर और नियमित जांच कराकर बच्चों के लिवर को स्वस्थ रखा जा सकता है। विशेषज्ञों की माने तो शरीर को विषैले तत्वों से मुक्त रखने और संपूर्ण स्वास्थ्य बनाए रखने में लिवर की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। लेकिन जब लिवर सही ढंग से कार्य नहीं करता, तो इसका असर पूरे शरीर पर दिखाई देने लगता है।