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भगवान को भी लगी ठंड: प्राचीन गणेश मंदिर में चिंतामण गणेश व रिद्धि सिद्धि को ओढाई शॉल कंबल,
बदनावर
भगवान को भी लगी ठंड: प्राचीन गणेश मंदिर में चिंतामण गणेश व रिद्धि सिद्धि को ओढाई शॉल कंबल,
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शुक्रवार शाम से ठंड ने अपना असर पुनः दिखाना शुरू कर दिया है। ठंड का असर आम लोगों पर तो पढ़ ही रहा भगवान पर भी इसका असर देखा जा रहा है। यही कारण है कि यहां नगर के मालीपुरा में स्थित प्राचीन चिंतामण गणेश मंदिर में भक्तों ने अपने भगवान को ऊनि कपड़े ओढ़ाकर ठंड से बचाने का प्रयास किया है।
मंदिर के पुजारी व श्रद्धालुओं ने मन्दिर में विराजित भगवान चिंतामन गणेश व माता रिद्धि सिद्धि को शाल, कंबल एवं ऊनि कपड़े पहनाए हैं। पुजारी श्याम सिद्ध की माने तो जिस तरह से आम लोगों पर सभी ऋतुओं का असर होता है, वैसे ही भगवान को भी एहसास होता है। इसलिए ठंड से बचाने भगवान को अलग-अलग रंग के कंबल व शाल ओढ़ाए हैं। उन्होंने बताया कि कुछ दिनों से ठंड बढ़ती जा रही है। ठंड का असर बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक देखा जा रहा है भगवान भी इससे अछूते नहीं है।
उन्होंने बताया कि ठंड कम होने पर इसे निकाला जाता है। वहीं भगवान को अलग-अलग समय पर भोग और स्नान भी कराया जाता है। आरती के समय बड़ी संख्या में श्रद्धालु भी शामिल होते हैं इस प्रभु के जयकारे लगते हैं। पुजारी ने बताया कि यहां रोज भगवान के विश्राम के लिए बिस्तर भी लगाया जाता है। यह सिलसिला करीब 4 साल से चल रहा है।
खुदाई के दौरान निकली थी स्वयंभू गणेश प्रतिमा,
ईशान कोण में होने से स्वयंसिद्ध स्थान है। यहां विराजित गणेश प्रतिमा विशालकाय होकर स्वयं भू है। प्रतिमा परमार कालीन बताई जाती है। मंदिर के पुजारी श्याम सिद्ध ने बताया कि करीब 100 साल पहले उनके परदादा बंशीधर को स्वप्न में आया था कि इस जगह खुदाई करें। उसी आधार पर परिवारजनों ने स्वप्न को भगवान का आशीर्वाद मानते हुए उसी जगह खुदाई की। खुदाई के दौरान अंकित स्थान से प्रतिमा निकली। प्रतिमा को उसी स्थान पर विधिवत पूजन कर स्थापित किया। प्रतिमा मनोकामनापूर्ण होने से बारहों मास दर्शनार्थियों का जमावड़ा रहता है। लोग मांगलिक कार्यों की निमंत्रण पत्रिका भी पहले यहां चढ़ाकर श्रीगणेश को आमंत्रित करते है। सन 2011 में मंदिर में रिद्धि सिद्धि की स्थापना भी धुमधाम से समारोह पूर्वक हुई थी। मंदिर शहर के नजदीक होने एवं प्राकृतिक छटा फैली होने से दर्शन के लिए आने वाले लोगों को काफी सुकून मिलता है।
श्री चिंतामण गणेशजी क्यों हुआ नाम,
मान्यता है कि 12 महीने के किसी दिन यहां मंदिर में सच्चे मन से की गई मन्नत पूरी होती है। ऐसा भी कहा जाता है कि विराजित गणेश समक्ष कोई भी चिंता व्यक्त की जाए। उसका समाधान अवश्य ही होता है। पहले यह मंदिर सुनसान जगह पर था। समय के साथ साथ हुए विकास के बाद मंदिर की सुंदरता भी बढ़ गई है। भक्तों का तांता लगा रहता है। जिनकी मनोकामना पूरी होती है वे भी मत्था टेकने यहां जरूर आते है। गणेशोत्सव के दिनों में यहां मेले जैसा माहौल रहता है। दिनभर दर्शन के लिए भक्त यहां पहुंचते है। यहां प्रतिदिन सुबह 9 बजे व शाम को सवा 7 बजे मंगल आरती होती है। नि:संतान दंपती भी यहां आकर संतान प्राप्ति की मन्नते मांगते है। जिनकी भी भगवान गणेश मुरादे पूरी करते है।