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अमीर देशों में कॉलेज डिग्री पर सवाल उठ रहे

पढ़ाई महंगी, नौकरी भी नहीं; एशियाई छात्रों से पिछड़ रहे श्वेत

अमीर देशों में कॉलेज डिग्री पर सवाल उठ रहे:पढ़ाई महंगी, नौकरी भी नहीं; एशियाई छात्रों से पिछड़ रहे श्वेत

अमेरिका, ब्रिटेन समेत अमीर देशों में में कॉलेज डिग्री को लेकर सवाल उठने लगे हैं। इसके पीछे कई वजह हैं। इनमें मुख्य है कॉलेज फीस तेजी से बढ़ना। महंगाई बढ़ने से फीस बढ़ी है, जिससे छात्रों को उच्च शिक्षा के लिए भारी कर्ज लेना पड़ रहा है। वॉल स्ट्रीट जर्नल के सर्वे के मुताबिक 18 से 34 साल के 56% अमेरिकियों का मानना है कि 4 साल की डिग्री उन्हें उम्मीद के मुताबिक रोजगार और मेहनताना देने में मददगार नहीं है।

इस डिग्री को पाने में जितना वक्त-पैसा लगता है, उस अनुपात में रिटर्न नहीं मिल रहा है। दूसरी ओर, तथ्य ये भी है कि ब्रिटेन में श्वेत छात्रों की तुलना में दक्षिण एशियाई (भारतीय) डिग्रीधारी छात्रों के लिए रोजगार की संभावना अधिक होती है, क्योंकि वे बिजनेस जैसे अपडेट विषयों की पढ़ाई करते हैं। अमेरिका में श्वेत और अश्वेत छात्रों की तुलना में एशियाई छात्रों को शिक्षा कर्ज चुकाने में कम परेशानी होती है।

ब्रिटेन सालाना 9 लाख रुपए ट्यूशन फीस ले रहा, अमीर देशों में सबसे ज्यादा
ब्रिटेन में 1990 के दशक के अंत तक ट्यूशन फीस नहीं लगती थी। अब यह औसतन 11 हजार डॉलर (करीब 9 लाख रु.) सालना है, जो अमीर देशों में सबसे अधिक है। न्यूयॉर्क फेडरल रिजर्व में जैसन एबेल के अनुसार, अमेरिका में औसत स्नातक डिग्री छात्र आउट ऑफ पॉकेट शुल्क 1970 में 2,300 डॉलर (करीब 1.9 लाख रुपए) था। ये 2018 में 8,000 डॉलर (6.6 लाख रु) हो गया।

‘कॉलेज-वेज प्रीमियम’ फिर से कम हो रहा
1980 के दशक में दुनिया में कॉलेज डिग्री लेने वालों की आय में उछाल शुरू हुआ। तब इसे ‘कॉलेज-वेज प्रीमियम’ नाम दिया गया। उस दौर में हाई स्कूल पास वालों से औसतन 35% अधिक वेतन मिल रहा था। 2021 तक अंतर 66% हो गया। अब कई देशों में वेतन प्रीमियम गिर रहा है।

ड्रॉप आउट, देरी से डिग्री पूरी करने से बढ़ रहीं दिक्कतें
रिसर्च फर्म इंस्टीट्यूट फॉर फिस्कल स्टडीज (IFS) के अनुसार, इंग्लैंड में 25% पुरुष स्नातक और 15% डिग्रीधारी महिलाओं को उन लोगों से कम सैलरी मिलती है, जो ग्रेजुएट नहीं है। बिना किसी योग्यता के ड्राप आउट होने से बड़ा नुकसान होता है। 40% से भी कम लोग तय वक्त में डिग्री ले पा रहे हैं।

अंग्रेजी, इतिहास, दर्शन और धर्मशास्त्र में मौके कम हुए

  • रोजगार के लिए डिग्री का सही विषय चुनना बड़ी चुनौती है। ब्रिटेन में आर्ट्स (10% से कम को ही जॉब मिल पाता है), सामाजिक देखभाल और कृषि के छात्रों के लिए जॉब मुश्किल है।
  • अमेरिका में सबसे ज्यादा रोजगार देने वाली डिग्रियां इंजीनियरिंग, कंप्यूटर साइंस और बिजनेस में हैं। म्यूजिक, विजुअल आर्ट्स में जॉब नहीं मिल रहे।
  • वर्जीनिया में मैरीमाउंट यूनिवर्सिटी ने अंग्रेजी, इतिहास, दर्शन और धर्मशास्त्र समेत नौ विषयों में प्रमुख विषयों को खत्म करने के लिए वोटिंग की।
  • मिशिगन में केल्विन यूनिवर्सिटी और वॉशिंगटन में हावर्ड यूनिवर्सिटी ने क्लासिक्स को छोड़ दिया है। ब्रिटेन में शेफील्ड यूनिवर्सिटी में पुरातत्व का भविष्य अनिश्चित है। एस्टोनिया में ग्रेजुएट की मांग घट रही। फिनलैंड, इजराइल और स्वीडन में यही स्थिति है।

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